श्रीसुंदरकांड भावार्थ नवाह्न पारायण (Day 5)

5/29/2 

राम कृपाँ भा काजु बिसेषी ॥

जब प्रभु श्री हनुमानजी लंका से लौटकर और वानर दल के साथ श्री सुग्रीवजी से मिले तो वानर दल ने एक बहुत सुंदर बात श्री सुग्रीवजी को कही उन्होंने भगवती सीता माता की खोज का श्रेय नहीं लिया बल्कि कहा कि प्रभु श्री रामजी की कृपा से ही उन्हें भगवती सीता माता की खोज के कार्य में विशेष सफलता मिली है हर कार्य की सफलता में प्रभु की कृपा को देखना यह भक्त का दृष्टिकोण होता है जीवन में सदैव सफलता को प्रभु की कृपा प्रसादी के रूप में ही देखना और मानना चाहिए

 

5/29/दोहा          

पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज ॥

जब वानर दल भगवती सीता माता का पता लगाकर प्रभु श्री रामजी के सामने उपस्थित हुआ तो दयानिधान प्रभु ने प्रेम से सबको गले लगाकर सबकी कुशल पूछी तब वानरों ने बहुत सुंदर उत्तर दिया और वे प्रभु से बोले कि अब आपके श्रीकमलचरणों के दर्शन पाने से सब कुशल और मंगल है यह सत्य सिद्धांत है कि प्रभु के श्रीकमलचरणों का दर्शन मंगल और कुशलता का मूल है

 

5/30/1-2            

जामवंत कह सुनु रघुराया । जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया ॥ ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर । सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर ॥ सोइ बिजई बिनई गुन सागर । तासु सुजसु त्रैलोक उजागर ॥ प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू । जन्म हमार सुफल भा आजू ॥

श्री जाम्बवंतजी ने कुछ अकाट्य सिद्धांतों का प्रतिपादन इन चौपाईयों में किया है वे प्रभु श्री रामजी से कहते हैं कि जिस पर प्रभु दया करते हैं उसका सदा कल्याण होता है और उसकी निरंतर कुशलता बनी रहती है प्रभु जिस पर दया करते हैं उस पर सभी देवतागण और ऋषि मुनि प्रसन्न रहते हैं जिस पर प्रभु दया करते हैं वही जीवन में विजयी होता है और विनय समेत सभी सद्गुण उसमें बसते हैं प्रभु जिस पर दया करते हैं उसी का सुंदर सुयश जगत में प्रकाशित होता है श्री जाम्बवंतजी ने भगवती सीता माता की खोज का श्रेय वानर दल को नहीं दिया बल्कि कहा कि प्रभु की कृपा से ही उसमें सफलता मिली है जिस कारण उन सबका जन्म ही सफल हो गया

 

5/31/2 

दीन बंधु प्रनतारति हरना ॥ मन क्रम बचन चरन अनुरागी ।

लंका से लौटकर भगवती सीता माता का पहला संदेश जो प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री रामजी को सुनाया वह बहुत हृदयस्पर्शी है माता ने सबसे पहले प्रभु के श्रीकमलचरणों में प्रणाम करके और प्रभु को दीनों के बंधु और शरणागत के दुःख को हरने वाला कहकर संबोधित कराया माता ने प्रभु श्री हनुमानजी के माध्यम से प्रभु श्री रामजी को कहलवाया कि वे मन, कर्म और वचन से प्रभु के श्रीकमलचरणों की सदा से अनुरागिनी हैं

 

5/32/1 

बचन काँय मन मम गति जाही । सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही ॥

यहाँ पर गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने साक्षात प्रभु श्री रामजी के श्रीमुख से एक अमर वाक्य कहलवा दिया प्रभु का यह आश्वासन कितना बल देने वाला है प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि जिसने मन, वचन और शरीर से उनका आश्रय ले लिया हो उसे स्वप्न में भी कभी विपत्ति का सामना नहीं करना पड़ता कितना बड़ा बल प्रभु के इन श्रीवचनों से विपत्ति में पड़े जीव को मिलता है

 

5/32/2 

कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई । जब तव सुमिरन भजन न होई ॥

प्रभु ने अपने श्रीवचनों में कहा कि जिसने मन, वचन और शरीर से प्रभु का आश्रय ले लिया हो उसे स्वप्न में भी कभी विपत्ति का सामना नहीं करना पड़ता प्रभु श्री रामजी के आश्वासन को गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने तुरंत प्रभु श्री हनुमानजी से अनुमोदित करवा दिया प्रभु के श्रीवचन सुनते ही प्रभु श्री हनुमानजी बोले कि विपत्ति तभी तक जीव को सताती है जब तक जीव प्रभु का भजन और स्मरण नहीं करता प्रभु का भजन और प्रभु का स्मरण करते ही विपत्ति का निवारण तुरंत हो जाता है विपत्ति से बचने का कितना सरल मार्ग प्रभु श्री हनुमानजी ने सबको दिखाया है

 

5/32/4 

सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं । देखेउँ करि बिचार मन माहीं ॥

प्रभु श्री रामजी का प्रभु श्री हनुमानजी के प्रति अद्वितीय स्नेह और प्रेम को दर्शाती यह चौपाई है प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि उन पर जो उपकार प्रभु श्री हनुमानजी ने किया है वैसा कोई देवता, मनुष्य, मुनि या कोई भी शरीरधारी कभी नहीं कर सकता प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि बदले में वे क्या उपकार करें यह वे समझ नहीं पा रहे हैं प्रभु श्री रामजी कहते हैं कि उन्होंने खूब विचार करके देख लिया पर प्रभु श्री हनुमानजी के उपकार से वे कुछ भी करके उऋण नहीं हो सकते ऐसा कहते-कहते प्रभु श्री रामजी के श्रीनेत्रों से प्रेमाश्रुओं की धारा बह निकली और उनका शरीर अत्यंत पुलकित हो गया बस इतनी-सी कल्पना करें कि साक्षात जगत नियंता प्रभु अगर कहते हैं कि वे उपकार से उऋण नहीं हो सकते तो प्रभु श्री रामजी ने प्रभु श्री हनुमानजी की सेवा को अपने हृदय में कितना बड़ा स्थान दिया है

 

5/32/दोहा          

चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत ॥

प्रभु श्री हनुमानजी ने अपनी भक्ति की अंतिम परीक्षा में क्या किया और कैसे उत्तीर्ण हुए यह यहाँ पर देखने को मिलता है प्रभु श्री रामजी द्वारा प्रभु श्री हनुमानजी के कार्य और सेवा को उपकार रूप में मानना और उसके लिए सदैव के लिए ऋणी रहना, यह कहने पर कोई भी गर्व और अहंकार से भर सकता था ऐसा हो इसलिए यह सुनते ही प्रभु श्री हनुमानजी तत्काल प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में यह कहते हुए गिर गए कि मेरी रक्षा करें, मेरी रक्षा करें किस चीज से रक्षा की बात प्रभु श्री हनुमानजी कह रहे हैं वे अहंकार और गर्व से रक्षा की बात कह रहे हैं हम काम, क्रोध, मद और लोभ को अपने पुरुषार्थ से जीत सकते हैं पर इन सबके सेनापति अहंकार को प्रभु के श्रीकमलचरणों में गिरकर प्रभु की कृपा और अनुग्रह प्राप्त किए बिना नहीं जीत सकते

 

5/33/1 

बार बार प्रभु चहइ उठावा । प्रेम मगन तेहि उठब न भावा ॥

प्रभु श्री रामजी के श्रीकमलचरणों में गिरे प्रभु श्री हनुमानजी को प्रभु श्री रामजी बार-बार उठाना चाहते हैं पर प्रभु श्री हनुमानजी वहाँ से उठना ही नहीं चाहते प्रभु श्री हनुमानजी को मानो उनका परम प्रिय स्थान मिल गया हो प्रभु ने अपना श्रीकरकमल प्रभु श्री हनुमानजी के मस्तक पर फेरना शुरू किया इससे ऊँ‍‍ची कोई अवस्था हो ही नहीं सकती कि भक्त का मस्तक प्रभु के श्रीकमलचरणों में झुका हो और प्रभु के श्रीकरकमल भक्त के मस्तक पर हो इस अदभुत स्थिति को देखकर भगवती पार्वती माता को कथा सुना रहे प्रभु श्री महादेवजी की भाव समाधि लग गई और इसके कारण कथा रुक गई और वे प्रेम मग्न हो गए

 

5/33/3 

बोला बचन बिगत अभिमाना ॥

प्रभु श्री रामजी ने प्रभु श्री हनुमानजी को अपने श्रीकमलचरणों से उठाकर अपने हृदय से लगा लिया और उनको उनके द्वारा किए लंका के पराक्रम की बात पूछने लगे अपनी इतनी बड़ाई और प्रभु श्री रामजी के ऋणी होने तक की बात सुनकर भी प्रभु श्री हनुमानजी ने अपने कथन में तनिक भी अभिमान नहीं आने दिया