श्रीसुंदरकांड भावार्थ नवाह्न पारायण (Day 9)

5/51/दोहा          

प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह ॥

जब श्री विभीषणजी रावण का त्याग करके प्रभु श्री रामजी की शरण में आए तो रावण ने अपने गुप्त दूत भेजे जिन्होंने कपट से वानर शरीर धारणकर श्री विभीषणजी को प्रभु द्वारा अपने शरण में लेने की घटना देखी विपक्ष के वे दूत भी प्रभु श्री रामजी की शरणागत वत्सलता देखकर अपने हृदय में प्रभु के सद्गुणों और शरणागत पर प्रभु के अपार स्नेह की सराहना करने लगे

 

5/54/2 

राम सपथ दीन्हें हम त्यागे ॥

प्रभु श्री रामजी का कितना अलौकिक प्रताप है कि शत्रु पक्ष के गुप्तचर जो वानरों द्वारा पकड़ लिए गए उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए प्रभु श्री रामजी की शपथ दे दी प्रभु श्री रामजी की शपथ विपक्षी राक्षसों के गुप्तचरों को बचाने में भी सहायक बन गई

 

5/55/1 

राम कृपाँ अतुलित बल तिन्हहीं ।

जब रावण ने अपने गुप्तचरों से वानरों का बल पूछा तो वे बोले कि सभी वानरों पर प्रभु श्री रामजी की कृपा दृष्टि है और प्रभु की कृपा के कारण वे सभी अतुलनीय बल वाले बन गए हैं

 

5/55/दोहा          

सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम । रावन काल कोटि कहुँ जीति सकहिं संग्राम ॥

रावण के गुप्तचर रावण से बोले कि सभी वानरों के सिर पर सर्वेश्वर प्रभु श्री रामजी हैं इसलिए वे संग्राम में रावण की तो बात ही क्या है, करोड़ों कालों को भी जीत सकते हैं

 

5/56/1 

राम तेज बल बुधि बिपुलाई । सेष सहस सत सकहिं न गाई ॥

रावण के गुप्तचर रावण को बोले कि प्रभु श्री रामजी के तेज, सामर्थ्य, बल और बुद्धि की अधिकता इतनी है कि उनका वे तो क्या, लाखों श्री शेषनारायणजी मिलकर भी उनका वर्णन नहीं कर सकते

 

5/57/3 

अति कोमल रघुबीर सुभाऊ । जद्यपि अखिल लोक कर राऊ ॥ मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु करिही । उर अपराध न एकउ धरिही ॥

रावण के गुप्तचरों ने रावण से कहा कि वैसे तो प्रभु श्री रामजी तीनों लोकों के स्वामी हैं पर उनका स्वभाव अत्यंत ही कोमल है प्रभु में इतनी करुणा और कृपा है कि अगर रावण अब भी प्रभु की शरण में चला जाए तो उसके सभी अपराधों को भुलाकर प्रभु उस पर कृपा करेंगे और उसे अपनी शरण में लेकर अभय कर देंगे

 

5/59/4 

प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई ।

जब श्री समुद्रदेवजी ने विनय से राह मांगने पर प्रभु श्री रामजी को राह नहीं दी तो प्रभु ने क्रोध करके भयंकर अग्निबाण का मात्र संधान किया जिससे सागर में अग्नि की ज्वालाएँ उठने लगी सागर के मगर, सांप और मछलियां ताप से व्याकुल हो उठे तब श्री समुद्रदेवजी ने भयभीत होकर प्रभु के श्रीकमलचरण पकड़ लिए उन्होंने कहा कि उन्हें पता है कि प्रभु के अग्निबाण से वे सूख जाएंगे और सेना बिना परिश्रम ही पार चली जाएगी पर दीनता दिखाते हुए श्री समुद्रदेवजी ने कहा कि इसमें उनकी बड़ाई नहीं होगी और उनकी मर्यादा नहीं रहेगी उन्होंने कहा कि श्री वेदजी कहते हैं कि प्रभु की इच्छा और आज्ञा का कोई भी, कभी भी उल्लंघन नहीं कर सकता ऐसे दीन वचन सुनने पर प्रभु का क्रोध तत्काल शांत हो गया और प्रभु की करुणा जागृत हो गई

 

5/60/1 

तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे ॥

हमें कितनी भी सिद्धियां और वरदान मिल जाए पर वे सब प्रभु के प्रताप से ही फलित होते हैं श्री समुद्रदेवजी ने इस सिद्धांत को बताते हुए प्रभु श्री रामजी से कहा कि श्री नीलजी और श्री नलजी ने वरदान पाया है कि उनके स्पर्श वाले पत्थर तैरेंगे पर ऐसा केवल और केवल प्रभु के प्रताप के कारण ही संभव हो पाएगा

 

5/60/2 

मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई ।

श्री समुद्रदेवजी ने प्रभु श्री रामजी से कहा कि वे भी प्रभु की प्रभुता को अपने हृदय में धारण करने के कारण ही बनने वाले सेतु को धारण करने में सक्षम हो पाएंगे अपने बल से वे सेतु को धारण नहीं कर पाएंगे बल्कि प्रभु के बल से ही वे ऐसा करने में सफल होंगे

 

5/60/छंद            

सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना ॥ तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना ॥

गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री सुंदरकांडजी में वर्णित प्रभु का श्रीचरित्र कलियुग के समस्त पापों को पराजित करने वाला है प्रभु के गुणसमूहों का गान सुख देने वाला, सभी संदेहों का नाश करने वाला और विषाद का दमन करने वाला है गोस्वामी श्री तुलसीदासजी जीव का आह्वान करके कहते हैं कि जीव को अपने मूर्ख मन को समझाना चाहिए कि संसार की सभी आशाओं और संसार के सभी भरोसों को छोड़कर निरंतर प्रभु के श्रीचरित्र को गाना और सुनना चाहिए

 

5/60/दोहा          

सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान । सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान ॥

गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री सुंदरकांडजी की फलश्रुति में कहते हैं कि प्रभु श्री रामजी का गुणगान पूरी तरह से सुंदर मंगल करने वाला साधन है जो भी प्रभु के इस गुणगान को आदर सहित सुनेंगे वे भवसागर को सहजता से बिना किसी साधन के जहाज के पार हो जाएंगे और तर जाएंगे