श्रीसुंदरकांड भावार्थ नवाह्न पारायण (Day 3)

5/14/1 

हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी ।

जैसे ही भगवती सीता माता के मन में यह विश्वास हो गया कि प्रभु श्री हनुमानजी प्रभु श्री रामजी के निज जन हैं तो प्रभु का सेवक जानकर उनका वात्सल्य जग गया और उनके मन में प्रभु श्री हनुमानजी के लिए अत्यंत स्नेह जग उठा यह शाश्वत सिद्धांत है कि प्रभु का जो दास होता है वह माता का अति कृपापात्र स्वतः ही हो जाता है माता कृपा करने से पहले सिर्फ यह देखती है इस जीव का प्रभु के प्रति कितना आकर्षण है और कितनी अनन्यता है

 

5/14/2 

कोमलचित कृपाल रघुराई ।

प्रभु श्री हनुमानजी के समक्ष प्रभु श्री रामजी को याद करते हुए भगवती सीता माता ने दो विशेषणों का प्रयोग प्रभु के लिए किया है जो हृदयस्पर्शी हैं माता कहतीं हैं कि प्रभु कोमल हृदय के हैं और प्रभु अत्यंत कृपालु हैं कोमल हृदय होने के कारण किसी के दुःख और विपत्ति को देखकर प्रभु का कोमल हृदय द्रवित हो जाता है और अत्यंत कृपालु होने के कारण प्रभु तत्काल उस पर कृपा कर देते हैं

 

5/14/3 

सहज बानि सेवक सुख दायक ।

भगवती सीता माता प्रभु श्री रामजी को याद करते हुए प्रभु श्री हनुमानजी को कहतीं हैं कि प्रभु के स्वभाव में है कि प्रभु अपने सेवकों और भक्तों को सुख प्रदान करते हैं यह प्रभु की स्वाभाविक क्रिया है कि प्रभु के संपर्क में जो भी आता है प्रभु उसे सुख प्रदान करते हैं इसलिए ही संतों ने प्रभु को सुख की राशि कहा है

 

5/15/5 

कह कपि हृदयँ धीर धरु माता । सुमिरु राम सेवक सुखदाता ॥ उर आनहु रघुपति प्रभुताई । सुनि मम बचन तजहु कदराई ॥

प्रभु श्री हनुमानजी ने भगवती सीता माता को प्रभु श्री रामजी का संदेश सुनाया और प्रभु के विरह में हृदय में धीरज धारण करने को कहा उन्होंने माता से कहा कि सेवकों को सदैव सुख देने वाले प्रभु का वे निरंतर स्मरण करें और प्रभु की प्रभुता का अपने हृदय में चिंतन करें ऐसा करने पर उनके मन के नकारात्मक विचार अपने आप खत्म हो जाएंगे सूत्र यह है कि प्रभु की प्रभुता का विचार करते ही हमें शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है

 

5/15/दोहा          

निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु । जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु ॥

प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री रामजी की प्रभुता बताते हुए भगवती सीता माता से कहा कि राक्षसों के पूरे-के-पूरे समूह को वे कीट पतंगों के समान समझें जो प्रभु के बाणरूपी अग्नि में जलकर भस्म होने वाले हैं जैसे कीट पतंग अग्नि में जलकर समाप्त हो जाते हैं वैसा ही हाल इन राक्षसों का होने वाला है प्रभु श्री हनुमानजी ने माता को कहा कि आप इसलिए हृदय में धीरज धारण करे और राक्षसों के समूह का विनाश हुआ माने

 

5/16/दोहा          

प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल ॥

जब प्रभु श्री हनुमानजी का लघु रूप देखकर भगवती सीता माता ने सोचा कि इतने छोटे वानर बलवान राक्षसों को कैसे जीतेंगे तो प्रभु श्री हनुमानजी ने अपना विशाल रूप प्रकट किया वह रूप अत्यंत बड़े पर्वत से भी ज्यादा विशाल था और युद्ध में शत्रुओं के हृदय में भय और कंपन उत्पन्न करने वाला था जब भगवती सीता माता के मन को विश्वास हुआ तो प्रभु श्री हनुमानजी फिर लघु रूप में गए और फिर उन्होंने अहंकार रहित होकर जो कहा वह बहुत मार्मिक है उन्होंने कहा कि इस प्रताप में उनका कोई योगदान नहीं है क्योंकि यह प्रताप उनका है ही नहीं, यह उनके प्रभु का है प्रभु की कृपा हो तो एक अत्यंत निर्बल भी अपने से बहुत ज्यादा बलशाली और महान बलवान को मार सकता है

 

5/17/2 

अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥ करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना । निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ॥

जब भगवती सीता माता प्रभु श्री हनुमानजी की प्रभु भक्ति देखकर प्रसन्न हुई तो उन्होंने एक के बाद एक आशीर्वाद देना आरंभ किया उन्होंने प्रभु श्री हनुमानजी को प्रभु श्री रामजी का अत्यंत प्रिय जानकर आशीर्वाद दिया कि वे बल और शील के निधान होंगे उन्हें कभी बुढ़ापा नहीं आएगा और वे अमर होंगे वे सद्गुणों की खान होंगे प्रभु श्री हनुमानजी सुनते गए और फिर भगवती सीता माता ने वह कहा जो प्रभु श्री हनुमानजी हृदय से सुनना चाहते थे माता ने कहा कि उनका आशीर्वाद है कि प्रभु श्री रामजी उन पर बहुत कृपा करेंगे माता के श्रीमुख से "प्रभु कृपा करेंगे" ऐसा अमोघ आशीर्वाद सुनकर मानो प्रभु श्री हनुमानजी पूर्ण प्रेम में मग्न हो गए उन्होंने माता के श्रीकमलचरणों में अपना शीश बार-बार नवाया और हाथ जोड़कर कहा कि अब वे कृतार्थ हो गए क्योंकि यह बात जगत प्रसिद्ध है कि माता का आशीर्वाद अचूक है और फलित होकर ही रहता है

 

5/17/दोहा          

रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु ॥

हर छोटी-से-छोटी और बड़ी-से-बड़ी क्रिया करने से पहले प्रभु का स्मरण करना चाहिए, यह सीख भगवती सीता माता ने इस दोहे में सबको दी है जब प्रभु श्री हनुमानजी को अशोक वाटिका में फल खाने की इच्छा हुई तो उन्होंने माता से अनुमति मांगी माता ने अनुमति देते हुए जो कहा वह बहुत ध्यान देने योग्य और जीवन में धारण करने योग्य है फल खाने की छोटी-सी क्रिया की अनुमति देते हुए माता ने कहा कि प्रभु के श्रीकमलचरणों को हृदय में धारण करके और उनका ध्यान करके ही ऐसा करना चाहिए प्रभु को जब हम हर क्रिया में अपने साथ रखते हैं तो प्रभु का अनुग्रह हमें मिलता है और हम सफल होते हैं

 

5/19/दोहा          

जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार ॥

प्रभु श्री हनुमानजी को बचपन में ही सभी देवताओं से वरदान मिल गया था कि उन पर देवताओं का कोई भी अस्त्र, शस्त्र, मंत्र, तंत्र कभी भी प्रभाव नहीं करेगा फिर भी प्रभु श्री हनुमानजी की दीनता देखें कि जब मेघनाथ की आसुरी माया और बल उनके सामने नहीं चला और उसने ब्रह्मास्त्र का संधान किया तो प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री ब्रह्माजी के सम्मान और ब्रह्मास्त्र की महिमा नहीं मिटे इसलिए उस ब्रह्मास्त्र के प्रभाव में गए प्रभु श्री हनुमानजी अकाट्य ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को भी सरलता से टाल सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया यह उनकी कितनी बड़ी महानता है

 

5/20/2 

जासु नाम जपि सुनहु भवानी । भव बंधन काटहिं नर ग्यानी ॥

प्रभु श्री महादेवजी भगवती पार्वती माता से कहते हैं कि विवेकी पुरुष संसार के जन्म-मरण के बंधन को प्रभु का नाम जप करके काट डालते हैं प्रभु का नाम जप भव बंधन को काट डालने वाला साधन है प्रभु के नाम जप की इतनी बड़ी महिमा स्वयं प्रभु श्री महादेवजी ने प्रकट की है